September 16, 2019

वो दिन भी रात के जैसा था। हाथ में दिया लेके खडा था ।।

वो दिन भी रात के जैसे था ।
हाथ मे दिया लेके खड़ा था ।।
मै पूंछ रहा था उसे ।
क्या ढूंड रहे ओ उजाले में ।।
वो बस मुस्कुराते  हुवे ढूंड रहा था ।
वो दिन भी रात के जैसा था ।
हाथ में दिया लेके खडा था ।।१।।

गिर रहा था, खुद को संभाल रहा था ।
दिन के उजाले में रात को ढूंड़ रहा था ।।
रो रहा था, खुद को कोस रहा था ।
मैं पूछ रहा था उसे, क्यु रो रहे हो ।।
वो बस रोते रोते चला गया ।
वो दिन भी रात के जैसा था ।।
हाथ में दिया लेके खडा था ।।२।।

गली गली में आज वो खुद गया था ।
हर किसी से वो बात कर रहा था ।।
कभी रोता था तो कभी मुस्कुराता था ।
वो खुद की परछाई से खुश था ।।
मैंने पूछा कभी मीले हो उसे ।
वो तो बस  नजरे चुरता था ।।
वो दिन भी रात के जैसा था ।
हाथ में दिया लेके खडा था ।।३।।



                                                         -TheExWriter✍🏻